उन्का जन्म अविभाजित भारतवर्ष के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) नामक कस्बे में हुआ था[3]। पटवारी पिता के चार पुत्रों में ये सबसे छोटे थे। प्रतिभावान् विद्यार्थी होने के कारण विद्यालय तथा कालेज में इन्हें छात्रवृत्तियाँ मिलीं। पंजाब विश्वविद्यालय से सन् १९४३ में बी. एस-सी. (आनर्स) तथा सन् १९४५ में एम. एस-सी. (ऑनर्स) परीक्षाओं में ये उत्तीर्ण हुए तथा भारत सरकार से छात्रवृत्ति पाकर इंग्लैंड गए। यहाँ लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ए. रॉबर्टसन् के अधीन अनुसंधान कर इन्होंने डाक्टरैट की उपाधि प्राप्त की। इन्हें फिर भारत सरकार से शोधवृत्ति मिलीं और ये जूरिख (स्विट्सरलैंड) के फेडरल इंस्टिटयूट ऑव टेक्नॉलोजी में प्रोफेसर वी. प्रेलॉग के साथ अन्वेषण में प्रवृत्त हुए।
भारत में वापस आकर डाक्टर खुराना को अपने योग्य कोई काम न मिला। हारकर इंग्लैंड चले गए, जहाँ कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सदस्यता तथा लार्ड टाड के साथ कार्य करने का अवसर मिला1 सन् १९५२ में आप वैकवर (कनाडा) की ब्रिटिश कोलंबिया अनुसंधान परिषद् के जैवरसायन विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए। सन् १९६० में इन्होंने संयुक्त राज्य अमरीका के विस्कान्सिन विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑव एन्ज़ाइम रिसर्च में प्रोफेसर का पद पाया और अब इसी संस्था के निदेशक है। यहाँ उन्होंने अमरीकी नागरिकता[4] स्वीकार कर ली।
चिकित्सक खुराना जी जीवकोशिकाओं के नाभिकों की रासायनिक संरचना के अध्ययन में लगे रहे। नाभिकों के नाभिकीय अम्लों के संबंध में खोज दीर्घकाल से हो रही है, पर डाक्टर खुराना की विशेष पद्धतियों से वह संभव हुआ। इनके अध्ययन का विषय न्यूक्लिऔटिड नामक उपसमुच्चर्यों की अतयंत जटिल, मूल, रासायनिक संरचनाएँ हैं। डाक्टर खुराना इन समुच्चयों का योग कर महत्व के दो वर्गों के न्यूक्लिप्रोटिड इन्जाइम नामक यौगिकों को बनाने में सफल हुये।
नाभिकीय अम्ल सहस्रों एकल न्यूक्लिऔटिडों से बनते हैं। जैव कोशिकओं के आनुवंशिकीय गुण इन्हीं जटिल बहु न्यूक्लिऔटिडों की संरचना पर निर्भर रहते हैं। डॉ॰ खुराना ग्यारह न्यूक्लिऔटिडों का योग करने में सफल हो गए थे तथा अब वे ज्ञात शृंखलाबद्ध न्यूक्लिऔटिडोंवाले न्यूक्लीक अम्ल का प्रयोगशाला में संश्लेषण करने में सफल हुये। इस सफलता से ऐमिनो अम्लों की संरचना तथा आनुवंशिकीय गुणों का संबंध समझना संभव हो गया है और वैज्ञानिक अब आनुवंशिकीय रोगों का कारण और उनको दूर करने का उपाय ढूँढने में सफल हो सकेंगे।
डाक्टर खुराना की इस महत्वपूर्ण खोज के लिए उन्हें अन्य दो अमरीकी वैज्ञानिकों के साथ सन् १९६८ का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। आपको इसके पूर्व सन् १९५८ में कनाडा के केमिकल इंस्टिटयूट से मर्क पुरस्कार मिला तथा इसी वर्ष आप न्यूयार्क के राकफेलर इंस्ट्टियूट में वीक्षक प्रोफेसर नियुक्त हुए। सन् १९५९ में ये कनाडा के केमिकल इंस्ट्टियूट के सदस्य निर्वाचित हुए तथा सन् १९६७ में होनेवाली जैवरसायन की अंतरराष्ट्रीय परिषद् में आपने उद्घाटन भाषण दिया। डॉ॰ निरेनबर्ग के साथ आपको पचीस हजार डालर का लूशिया ग्रौट्ज हॉर्विट्ज पुरस्कार भी सन् १९६८ में ही मिला है।
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